बस्ती । वसंत पंचमी की पूर्व संध्या पर प्रेमचन्द साहित्य एवं जन कल्याण संस्थान द्वारा महाकवि सूर्य कान्त त्रिपाठी निराला को उनकी जयंती पर याद किया गया। मुख्य अतिथि डा. रघुवंश मणि त्रिपाठी ने कहा कि निराला विद्रोही कवि थे इसलिए उनके काव्य-शिल्प में भी विद्रोह की छाप स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। उन्होंने कला के क्षेत्र में रूढ़ियों और परंपराओं को स्वीकार नहीं किया था। उन्होंने भाषा, छंद, शैली-प्रत्येक क्षेत्र में मौलिकता और नवीनता का समावेश करने का प्रयत्न किया था। वे छायावादी कवि थे इसलिए शिल्प की कोमलता उनकी कविता में कहीं-न-कहीं अवश्य बनी रही थी।
आयोजक सत्येन्द्रनाथ मतवाला ने निराला को नमन् करते हुये कहा कि ‘वह तोड़ती पत्थर, देखा उसे मैने इलाहाबाद के पथ पर’ जैसी कृतियों के रचनाकार निराला कवि के व्यक्तित्व को हम आज के परिदृश्य में कैसे देखें। पहली बात तो मन में यही आती है कि राजनीतिक रूप से स्वतंत्र होने के बाद कितनी तेजी से हम सांस्कृतिक दृष्टि से पराधीन हो गए हैं। ऐसे में रचनाकारों को निराला जी से प्रेरणा लेनी होगी।
संचालन करते हुये डा. रामकृष्ण लाल जगमग ने कहा कि निराला जी ने सरस्वती के मुखमंडल को करुणा के आँसुओं से धुला कहा है। यह सरस्वती का नया रूप है। उन्होंने किसानों की सरस्वती की प्रतिष्ठा की है। जिस तरह तुलसी ने अन्नपूर्णा को राजमहलों से निकालकर भूखे-कंगालों के बीच स्थापित किया उसी तरह निराला ने सरस्वती को मंदिरों, पूजा-पाठ के कर्मकांड से बाहर लाकर खेतों-खलिहानों में श्रमजीवी किसानों के सुख-दुख भरे जीवन क्षेत्र में स्थापित किया। वे सदैव स्मरण किये जायेंगे।
इस अवसर पर प्रेमचन्द साहित्य एवं जन कल्याण संस्थान की ओर से डा. रामदल पाण्डेय, चन्द्रबली मिश्र, रामचन्द्र राजा, राजेश कुमार मिश्र, श्यामलाल यादव, धर्मेन्द्र पाण्डेय ‘स्वप्निल’ सन्तोष कुमार श्रीवास्तव, नवनीत पाण्डेय, विशाल पाण्डेय को उनके कृतियों एवं योगदान के लिये सम्मानित किया गया। कार्यक्रम में श्याम प्रकाश शर्मा, विमल कुमार श्रीवास्तव, डा. राममूर्ति चौधरी, फूलचन्द चौधरी, सुमेश्वर यादव, मो. वसीम अंसारी, राजेन्द्र सिंह ‘राही’ अजमत अली सिद्दीकी, डा. सत्यदेव त्रिपाठी, परशुराम शुक्ल, जगदीश प्रसाद पाण्डेय, शब्बीर अहमद, दीनानाथ आदि ने निराला जी के व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला और कवियों ने रचनायें पढी।
वसंत पंचमी की पूर्व संध्या पर याद किये गये महाकवि निराला